नेपाल में सोशल मीडिया ऐप बैन: क्या हुआ, क्यों हुआ, और क्या फर्क पड़ा?
नेपाल की सरकार ने हाल ही में 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बैन कर दिया—हाँ, वो वहीं वाले Facebook, Instagram, YouTube, WhatsApp, X (Twitter), Reddit, LinkedIn, Snapchat, Discord, Signal, Threads वगैरह—बस नाम सुनकर थकावट आने लगी, है ना? इस कार्रवाई की वजह थी इनका देश में रजिस्ट्रेशन ना कराना—सरकार चाहती थी कि हर ऐप नेपाल में अपना ऑफिस खोलें, देशी संपर्क व्यक्ति रखें, ग्रिवांस रीड्रेसल सिस्टम बनाएं (आपकी शिकायतें तो कहीं जाएँ, कम से कम पता तो चले) ।
सरकार ने 28 अगस्त 2025 को एक सात दिवसीय अल्टीमेटम दिया, और जब कोई बड़ा प्लेटफॉर्म उस अवधि में पंजीकरण नहीं कर पाया—तो 4 सितंबर 2025 से ये सभी फ़ितूर पत्रकारिता (और मीम्स) बंद करवा दिए गए ।
उस लिस्ट में TikTok, Viber, Nimbuzz, WeTalk, Popo Live शामिल थे जो रजिस्टर हो गए थे, इसलिए वो चालू रहे, साथ ही Telegram और Global Diary आवेदन प्रक्रिया में थे—वो भी शायद बच गए ।
जनता ने कैसे लिया?
एक हल्के-फुल्के ड्रामा की आशंका थी, लेकिन असल में जो हुआ वो पहले ही होने वाला था: "Gen Z protests" — युवाओं ने इसे लोकतंत्र पर हमला माना, भ्रष्टाचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती के खिलाफ महा-क्रोधित हो लिए। कई जगहों पर प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे, पुलिस फायरिंग और आंसू गैस ने प्रशासन की ठंडक बढ़ाई, और 19 से ज़्यादा लोग मारे गए—ये सब हुआ सिर्फ इसलिए कि सरकार ने सोशल मीडिया बंद किया था ।
कुछ ने संसद और नेताओं के घरों को आग लगा दी—यकीनन, बहस आम हो गई थी कि ये डिजिटल कलंक नहीं बल्कि ग़ुस्से का डिजिटल विस्फोट था ।
अंत में, सरकार को रोक-छोक में वापस हटना पड़ा—विशेष रूप से Facebook, WhatsApp, Instagram, YouTube, X जैसे प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध हटा दिया गया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 15 दिन के भीतर जांच का वादा किया, मुआवजे और मुफ्त इलाज की बात की गई—लेकिन साथ में ग़ुस्से की अग्नि अभी भी ठंडी नहीं हुई थी ।
विस्तृत असर (क्योंकि सुविधा कमिटी वालों को शायद गूगल करने के लिए उठना पड़ेगा)
व्यापार और संवाद: नेपाल में लाखों प्रवासी और कारोबारी विदेश में रहते हैं—उनके लिए WhatsApp, Facebook जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स ज़िंदगी की महामार्ग थे। अचानक इन्हें बंद कर देना मतलब… सोशल जीवन में गड़बड़ी।
युवा विरोध: इंटरनेट पर आवाज़ चाहने वालों को इन प्लेटफ़ॉर्म्स पर मिटा देना मतलब लोकतांत्रिक राहत का गला घोंटना। "Gen Z protests" इसी गुस्से का नतीजा थे।
सेंसरशिप सवाल: अधिकारिता समूहों और न्याय-पत्रकारों ने इसे "निरंकुश नियंत्रण" और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया ।
वैश्विक ट्रेंड: यह कदम दक्षिण एशिया की उस बढ़ती प्रवृत्ति का हिस्सा है, जहाँ सरकारें डिजिटल संवाद को नियंत्रित करने लगी हैं—भारत, पाकिस्तान समेत कई जगहों पर ज़रूरत से ज़्यादा निगरानी की हदें पार हो रही हैं ।
